बच्चों की इस बीमारी के बारे में डॉक्टर भी कम ही जानते हैं
सेहतराग टीम
बच्चों में हृदय संबंधी ये ऐसी परेशानी है जिसके बारे में आज भी लोगों में बहुत ही कम जानकारी है और ऐसा इसलिए क्योंकि खुद देश के अधिकांश बाल रोग विशेषज्ञ इस बीमारी के बारे में अनजान हैं। हम बात कर रहे हैं कावासाकी सिंड्रोम या कावासाकी डिजीज (केडी) की जो कि एक दुर्लभ मगर तेजी से पैर पसारने वाली बीमारी है। दुनिया के अलग अलग देशों में 5 साल से कम उम्र के प्रति एक लाख बच्चों में से 60 से लेकर 150 बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
क्या है केडी
केडी बच्चों में नाड़ी संबंधी बीमारी होती है जिसके बारे में माना जाता है कि यदि इसका समय पर इलाज न किया जाए तो ये हृदय धमनी में घातक परेशानी पैदा कर सकती है। दरअसल केडी एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के हर मध्यम आकार की धमनियों की दीवार में जलन पैदा होती है। इनमें हृदय की धमनियां भी शामिल हैं जो कि हृदय की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति करती हैं। इस परेशानी को म्यूकोक्यूटेनस लिम्फ नोड सिंड्रोम भी कहते हैं क्योंकि ये लिम्फ नोड्स, त्वचा और मुंह, नाक और गले के अंदर के म्यूकस मेंबरेंस को भी प्रभावित करता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
दिल्ली के जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने कहा, ‘हालांकि केडी के होने की कोई खास वजह ज्ञात नहीं है मगर इतना तय है कि ये संक्रामक रोग नहीं है। अलग-अलग सिदधांत केडी को बैक्टीरिया, वायरस या फिर अन्य पर्यावरणीय कारकों से जोड़ते हैं मगर इनमें से कोई भी कारण साबित नहीं हो पाया है। वैसे कुछ जीन किसी बच्चे में केडी की ग्राह्यता को बढ़ा सकते हैं। ये सिंड्रोम बच्चों में हृदय रोग विकसित होने के मुख्य कारकों में एक है।’ डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि इस सिंड्रोम से होने वाले गंभीर नुकसान को प्रभावी इलाज के जरिये रोका जा सकता है। केडी के कारण जो गंभीर परेशानियां हो सकती हैं उनमें रक्त धमनियों खासकर हृदय धमनियों में सूजन शामिल है जिसे वैस्क्यूलिटीज कहते हैं। इसके अलावा हृदय की मांसपेशियों में सूजन भी हो सकती है जिसे मायोकार्डिटीज कहा जाता है। साथ ही हृदय वाल्व की समस्या भी हो सकती है।
लक्षण
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी बच्चे में लंबे समय तक बुखार हो और बुखार की कोई वजह पता नहीं चल रही हो तो ये केडी के कारण हो सकता है। इसके अलावा दोनों आंखों में लाली, जीभ का अत्यधिक लाल होना, हथेली और पैर के तलवों में अस्वाभाविक लाली, त्वचा का अपने आप उखड़ना, त्वचा पर रैश और लिम्प नोड्स में सूजन इस सिंड्रोम के लक्षणों में शामिल हैं। इसका पता इकोकार्डियोग्राफिक जांच के जरिये लगाया जा सकता है।
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि इस बीमारी का इलाज शुरुआती लक्षण का पता चलते ही शुरू कर देना चाहिए यानी बुखार के रहते समय ही। इलाज का लक्ष्य होना चाहिए कि बुखार को जल्द से जल्द कम किया जाए और हृदय को कम से कम नुकसान पहुंचे।
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